चंद्रयान-1 मिशन
मुझे ये बताने में बड़ी खुशी हो रही है कि सन् 2008 से पहले भारत चंद्रमा पर अपना अंतरिक्ष यान भेजेगा। जिसका नाम होगा चंद्रयान-1
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चन्द्रयान-1 |
चंद्रयान-1
- 15 अगस्त 2003 को उस वक्त के प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने लाल किले की प्राचीर से ये ऐलान किया था।
चन्द्रयान-1 - 22 अक्टूबर 2008 को सतीश धवन स्पेस सेंटर से चंद्रयान-1 लॉन्च हुआ। 8 नवंबर 2008 को ये स्पेसक्राफ्ट चांद के ऑर्बिट में पहुंच गया।
- चन्द्रयान-1 का उद्देश्य भारत की स्पेस टेक्नॉलॉजी के प्रदर्शन के साथ चांद की भौगोलिक स्थिति और खनिजों का पता लगाना था।
- मिशन के दौरान 14 नवंबर को स्पेसक्राफ्ट ने चंद्रमा की सतह पर एक मून इम्पैक्ट प्रोब की जानबूझकर क्रैश लैंडिंग कराई।
- इसी के डेटा की मदद से ही चांद में पानी होने का पता चला, जिसकी घोषणा सितंबर 2009 में अमेरिकी स्पेस एजेंसी NASA ने भी कर दी।
- इसने करीब 1 साल तक चंद्रमा के ऑर्बिट में 3400 चक्कर लगाए और डेटा भेजता रहा। आखिरकार 29 अगस्त 2009 को उससे हमेशा के लिए संपर्क टूट गया।
चंद्रयान-2 मिशन
- ये मिशन चंद्रयान-1 से एक कदम आगे की बात थी। इस बार ISRO ने तय किया कि वो चंद्रमा पर सॉफ्ट लैंडिंग करेगा और रोवर की मदद से चांद में मौजूद एलिमेंट्स की जानकारी जुटाएगा।
चन्द्रयान-2 - चुद्रयान-2 पहले रूसी अंतरिक्ष एजेंसी के साथ मिलकर 2013 में लॉन्च होना था। बाद में रूस इस एग्रीमेंट से बाहर हो गया तो। ISRO ने इस मिशन को अकेले करने की ठानी।
चंद्रयान-2 मिशन के पैलोड में तीन प्रमुख चीजें शामिल थीं.....
ऑर्बिटर- इसका काम चांद के ऑर्बिट में चक्कर लगाना, चांद की मैपिंग करना, सतह से जुड़े डेटा और तस्वीरों को भेजना था।
लैंडर- इसका काम चांद की जमीन पर सॉफ्ट लैंडिंग करना और सुरक्षित पहुंचाना था।
रोवर- 6 पहियों की इस गाड़ी का काम चांद में घूमकर सैंपल जुटाना और एनालिसिस करके डेटा भेजना था।
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विक्रम और प्रज्ञान |
22 जुलाई 2019 को चंद्रयान-2 लॉन्च हो गया। 20 अगस्त 2019 को सफलतापूर्वक चांद के ऑर्बिट में पहुंच गया।
6 सितंबर 2019 को लैंडर विक्रम की सॉफ्ट लैंडिंग शुरू हुई, लेकिन अचानक लैंडर से कम्यूनिकेशन टूटा और वो गायब हो गया।
ऑर्बिटर अभी चांद की कक्षा में घूूूूमकर साइंटिफिक डेटा जुटा रहा है। माना जा रहा है कि ये 7.5 साल तक काम करता रहेगा।
कैसे क्रैश हुआ लैंडर विक्रम
सरकार ने संसद में बताया कि 7 सितंबर 2019 को विक्रम लैंडर के ब्रेकिंग थ्रस्टर में गड़बड़ी की वजह से क्रैश लैंडिंग हो गई।
चांद पर लैंडिंग के पहले फेज में विक्रम लैंडर के चांद पर उतरने की स्पीड 1683 मीटर प्रति सेकैंड से घटाकर 146 मीटर प्रति सेकैंड की गई।
लैडिंग के दूसरे फेज में ब्रेकिंग सिस्टम में गड़बड़ी आ गई और जहां उसे लैंड करना था। उससे 500 मीटर ऊपर से कंट्रोल खो गया और लैंडर ने क्रैश लैडिंग की।
चंद्रयान-2 के ऑर्बिटर ने 4 दिन बाद विक्रम लैंडर को लोकेट कर लिया, लेकिन उससे कोई कम्यूनिकेशन नहीं हो सकता।
ISRO के एक अधिकारी का मानना है कि चांद की सतह पर लैंडिंग इतनी हार्ड हुई होगी कि लैंडर का सुरक्षित बच पाना बेहद मुश्किल है।
चांद पर लैंडिंग इतनी खतरनाक क्यों ?
धरती से चांद की दूरी करीब 4 लाख किलोमीटर है और धरती से मंगल की दूरी करीब 3,390 लाख किलोमीटर। इसके बावजूद एक्सपर्ट्स मानते है कि चांद पर सॉफ्ट लैंडिंग मंगल से भी ज्यादा खतरनाक है। इसकी 3 बड़ी वजहे हैं.....
1. चांद पर वायुमंडल न होना
धरती पर कोई चीज लैंड कराना आसान है क्योंकि यहां वायुमंडल है। मसलन- आप ऊंचाई से कूदिए और पैराशूट खोल लीजिए। वायुमंडल की वजह से आप धीरे- धीरे नीचे आएंगे और आराम से धरती पर उतर जाएंगे। मंगल ग्रह पर भी वायुमंडल है।
चांद पर ये वायुमंडल न के बराबर है। अगर वहां पैराशूट लेकर उतरेंगे तो इतनी तेजी से गिरेंगे कि बिखर जाएंगे। वहां उतरने के लिए प्रोपेलेंट जलाना पड़ता है।
इस ईधन को धरती से सीमित मात्रा में ही ले जाया जा सकता है। इसलिए गलती की कोई गुंजाइश नहीं है।
2. चांद पर कोई GPS न होना।
धरती पर एयरक्रॉफ्ट GPS से रास्ता पता कर लेते हैं। लेकिन चांद पर लोकेशन बताने वाला कोई सैटैलाइट नहीं है। ऐसे में न तो लैंडिंग की पोजिशन का पता चलता है। और न ही सतह से दूरी का।
3. चंद्रमा का साउथ पोल अजीब जगह
ISRO का चंद्रयान-3 चांद के साउथ पोल में लैंड करेगा। ये अजीब जगह है। यहां सूरज सिर्फ क्षितिज में होता है। इसलिए लंबी लंबी परछाई बनती है। जिसकी वजह से सतह पर कुछ साफ नहीं दिखता।
चंद्रयान-3 मिशन
ISRO ने ऐलान किया है कि वो 14 जुलाई को दोपहर 2.35 बजे चांद पर अपना तीसरा लॉन्च करेंगे।
चंद्रयान-3 मिशन के 3 अहम लक्ष्य
1. चंद्रयान-3 के लैंडर की चांद की सतह पर सुरक्षित और सॉफ्ट लैंडिंग
2. इसके रोवर को चांद की सतह पर चलाकर दिखाना।
3. वहां मौजूद एलिमेंट्स का वैज्ञानिक परीक्षण करना।
जैसे ही यह चांद की सतह पर पहुंचेगा, लैंडर और रोवर चांद के एक दिन यानी धरती के 14 दिनों के लिए एक्टिवेट हो जाएंगे।
चंद्रयान-3 जरूरी क्यों ?
करीब 700 करोड़ रुपए की लागत वाला चंद्रयान-3 मिश्न भारत के लिए अहम है क्योंकि-
1. इस मिशन का लैंडर चांद के उस हिस्से तक जाएगा, जिसके बारे में कोई जानकारी मौजूद नहीं है।
2. यह अभियान चांद की सतह पर रासायनिक तत्वों और मिट्टी, पानी के कणों जैसे प्राकृतिक संसाधनों को देखेगा।
3. चंद्रयान-3 के जरिए भारत अपने पड़ोसी चीन को स्पेस में एकतरफा बढ़त नहीं देना चाहता, जो पहले ही अपने 3 अभियानों को मंजूरी दे चुका है।
4. चांद के वीरान और उजाड़ सतह के नीचे कई बहुमूल्य धातुएं मौजूद होने की संभावना है। इसमें सोना, प्लेटिनम और यूरेनियम शामिल है।
चंद्रयान को लेकर जाएगी LVM3 रॉकेट
आंध्रप्रदेश के सतीश धवन स्पेस सेंटर में च्रदयान-3 के स्पेसक्राफ्ट को इसके लॉन्च व्हीकल LVM3 (लॉन्च व्हीकल मार्क-3) रॉकेट से जोड़ दिया गया है।
LMV3 देश का सबसे भारी रॉकेट है जिसका वजन 640 टन है। इसकी कुल लंबाई 43.5 मीटर है।
ये रॉकेट पृथ्वी से 200 किलोमीटर ऊपर तक 8 टन पेलोड लेकर जा सकता है।
चंद्रयान-3 के लैंडर मॉड्यूल का वजन करीब 1.7 टन, इसके प्रोपल्शन का वजन करीब 2.2 टन और लैंडर के अंदर 26 किलो का रोवर भी है। यानी कुल पेलोड करीब 3 टन का है।
इस 3 टन के पेलोड को धरती की ग्रैविटी से विपरीत ऑर्बिट तक ले जाना का काम LMV3 ही करेगा। ये एक थ्री- स्टेज रॉकेट है, जिसमें कई तरह का फ्यूल जलता है। और ये बहुत तेज गति से ऊपर जाता है।
डेढ़ महीने में चांद का सफर
धरती से चांद की दूरी 3.84 लाख किमी है, जिसे तय करने में चंद्रयान को 45 से 48 दिन लग सकते हैं। इसका रास्ता कुछ ऐसा होगा कि......
चंद्रयान-3 क स्पेसक्राफ्ट को LMV-3 के जरिए पृथ्वी के ऑर्बिट में भेज दिया जाएगा।
वो धरती का चक्कर लगाता रहेगा और प्रोपल्शन का इस्तेमाल करके अपना दायरा बढ़ाता रहेगा।
एक मोमेंट पर वो धरती के ऑर्बिट से निकलकर चांद के ऑर्बिट में दाखिल हो जाएगा और उसका चक्कर लगाना शुरू कर देगा।
चांद के ग्रविटेशनल फील्ड में पहुंचकर प्रोपल्शन की मदद से लैंडर सॉफ्ट लैंडिंग करेगा।
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